Wednesday 30 November 2011

kuchh Muktak

ज़ुबां मिलती नहीं उसको हजारों कष्ट पता है / 
न खुशियाँ बाँट पाता है ,न अपने गम बताता है // 
कहें हम जानवर उसको ,मगर जो आदमी है वो 
ज़ुबां से ताज पाता है ज़ुबां से मात खाता है // 
करो तुम बंद ये आँखें ज़ुबां और होंठ को सी लो / 
ज़हर भी दें वो गर तुमको ,तो चुपके से उसे पी लो//
हमारे बीच से उड़  कर ज़रा ऊँचे पे जा बैठे , 
कहें तब चुप से मर जाओ जिलाएँ तब तलक जी लो //

[ तथाकथित नेताओं को समर्पित ]

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