ज़ुबां मिलती नहीं उसको हजारों कष्ट पता है /
न खुशियाँ बाँट पाता है ,न अपने गम बताता है //
कहें हम जानवर उसको ,मगर जो आदमी है वो
ज़ुबां से ताज पाता है ज़ुबां से मात खाता है //
करो तुम बंद ये आँखें ज़ुबां और होंठ को सी लो /
ज़हर भी दें वो गर तुमको ,तो चुपके से उसे पी लो//
हमारे बीच से उड़ कर ज़रा ऊँचे पे जा बैठे ,
कहें तब चुप से मर जाओ जिलाएँ तब तलक जी लो //
[ तथाकथित नेताओं को समर्पित ]
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