Monday 5 December 2011

12 Months Ke Parv Tyohar

जनवरी माह के पर्व
तीज त्योहार भारतीय जीवन का सरस पहलू हैं। धार्मिक ही नहीं सामाजिक जीवन में भी ये हर्षोल्लास की झंकार भर देते हैं। भारत का कोई भी मौसम या महीना इनके बिना नहीं कटता फिर जनवरी तो साल का पहला महीना है। भारत की छिटकती हुई रंगीन पच्चीकारी संस्कृति में हर त्योहार का रंग यहाँ की संस्कृति की तरह अलग होते हुए भी एक है और एक होते हुए भी अलग। आइये जनवरी महीने के त्योहारों का आनंद लें।
गणतंत्र दिवस- हमारा गणतंत्र दिवस इस महीने का सबसे बड़ा त्योहार है। शायद ही कोई घर ऐसा हो जहाँ इस सुबह राजधानी में होने वाली परेड का टीवी पर इंतज़ार न किया जाता हो। राजधानी की इस भव्य परेड में तीनो भारतीय सेनाओं के जवानों का मार्च, लोक नर्तक, स्कूली बच्चों के कार्यक्रम तथा विभिन्न राज्यों की झांकियों का वैभवशाली प्रदर्शन देखने को मिलता है।
मकर संक्रान्ति दूसरा बड़ा पर्व है जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। पंजाब मे लोहड़ी, गुजरात में पतंग उत्सव, तमिलनाडु में पोंगल और असम में माघ बिहू और उत्तर प्रदेश में माघ मेला। यह सभी पर्व अंग्रेज़ी तिथि के अनुसार १३-१४ जनवरी को मनाए जाते हैं। लोहिड़ी का प्रमुख आकर्षण तेरह की रात का अलाव होता है। मौसम की फसल की चीज़े खाने पीने में होती हैं। रेवड़ी, मूँगफली गन्ने के रस की खीर और नाच गाना।
असम के भोगली बिहू में भी अलाव और भोजन इस पर्व के प्रमुख आकर्षण होते है। युवक युवतियाँ सारी रात जागते और नाचते-गाते हैं।
गुजरात के पतंग उत्सव के दिन सारा आकाश रंग बिरंगी पतंगों से भर जाता है। छोटे-छोटे काग़ज़ के दियों की टिमटिमाती हुई रौशनी से बनाई गई विशेष पतंगें आकाश में अपनी छटा बिखेर देती हैं। विशेष रूप से तैयार किए गए गुजराती व्यंजन, हस्तकला के नमूने और लोक कला इस पर्व की सुन्दरता को बढ़ा देते हैं।
पोंगल
तमिलनाडु में पोंगल लगातार तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहला दिन भोगी पोंगल जो घर में उत्सव मनाने का है। दूसरे दिन सूर्य देवता को सुगंधित चावल अर्पित किए जाते हैं। इसके अगले दिन मट्टू पोंगल को गाँव का सबसे प्रचण्ड कार्यक्रम होता है। पशुओं को नहला कर, उन्हें सजा-सँवार कर उनकी दौड़ कराई जाती है जो गाँव के जनजीवन मे उत्साह का संचार कर देती है।
फरवरी माह के पर्व
फरवरी का महीना भारत में कड़कती सर्दी के बाद अच्छे मौसम के प्रारंभ करता है और इसके साथ ही प्रारंभ होते है हर्ष और उल्लास के पर्व। न केवल सामाजिक बल्कि भारत सरकार की ओर से भी इस महीने में अनेक पर्वो का आयोजन किया जाता है।
वसंत पंचमी
वसंत पंचमी इस महीने का प्रमुख पर्व है। उत्तर भारत और पश्चिमी बंगाल में यह धूमधाम से मनाया जाता है जब बसंती रंग के कपड़े पहने हुए लोग नाचते गाते हुए वसंत का औपचारिक रूप से स्वागत करते हैं।
बंगाल मे इसे सरस्वती पूजा के नाम से जानते हैं और विद्या की देवी सरस्वती की पूजा धूमधाम से की जाती है। शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में इसकी रौनक देखते ही बनती है।
सूरजकुंड शिल्प मेला
दिल्ली के समीप सूरजकुंड में हस्त शिल्प और हथकरघे का एक सुरुचिपूर्ण वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ भारतीय शिल्पकारों के सधे हुए हस्तकौशल को पारंपरिक मेले के रूप में देखा जा सकता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम और ग्रामीण भोजन इस मेले की अन्य विशेषताएँ हैं।
अंतर्राष्ट्रीय योग सप्ताह
एक सप्ताह लम्बा यह आयोजन उत्तर प्रदेश में हिमालय की तलहटी में बसे छोटे से किंतु नयनाभिराम नगर ऋषिकेश में होता है। भारत के प्रमुख योग निर्देशक इस आयोजन में योगासनों पर विस्तृत व्याख्यान देते हैं और उनका प्रदर्शन करते हैं।
मरूस्थल मेला
राजस्थान के स्वर्णनगर जैसलमेर में तीन दिनों तक रंग तरंग, संगीत और उत्सव की धूम मचा देने वाले इस मेले के प्रमुख आकर्षण हैं पारंपरिक धुनों पर थिरकते गैर और अग्नि नृत्य पर थिरकते चपल नर्तक। पगड़ी प्रतियोगिता और मिस्टर डेज़र्ट का चुनाव इस मेले के अन्य आकर्षण हैं।
नागौर मेला
फरवरी माह में राजस्थान का छोटा-सा नगर नागौर उस समय सजीव हो उठता है जब यहाँ भारत के सबसे बड़े पशुमेले का आयोजन किया जाता है। मनोरंजक खेल और ऊँटों की दौड़ इस मेले के प्रमुख आकर्षण होते हैं।
एलिफेंटा उत्सव
मुम्बई हार्बर के पार विश्व प्रसिद्ध ऐलिफेंटा गुफाओं के पास इस उत्सव को फरवरी माह में आयोजित किया जाता है।जब खुले आकाश में सितारों के नीचे नृत्य संगीत का कार्यक्रम होता है तो यह संपूर्ण द्वीप एक स्वर्गिक प्रेक्षाग्रह के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
दक्कन उत्सव
हर वर्ष दक्कन उत्सव के समय शबे गज़ल, कव्वालियों और मुशायरों जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हैदराबाद का रमणीय शहर जीवंत हो उठता है। बहुरंगी आभा वाली काँच की चूड़ियां हैदराबाद की विशेषता हैं और यहाँ के मोती विश्व भर में प्रसिद्ध हैं इस कारण इस अवसर पर आयोजित मोतियों और चूड़ियों का मेला इस उत्सव की जान है। पर्यटकों को हैदराबादी भोजन भी कम आकर्षित नहीं करता।
ताज महोत्सव
आगरा के शिल्पग्राम स्थल पर १८ फरवरी से दस दिन के लिए शुरू होने वाले ताज महोत्सव का लोग साल भर इंतज़ार करते हैं। भारत के सर्वश्रेष्ठ कला शिल्प और सांस्कृतिक परंपराओं का यहाँ प्रदर्शन होता है। लोकगीत शायरी और शास्त्रीय नृत्य के साथ-साथ ऊँट और हाथी की सवारी तथा खेल और भोजन मेलों का भी आयोजन किया जाता है।
गोआ कार्निवाल
गोआ की सौ किलोमीटर लम्बी तट रेखा विश्व के सुन्दरतम तटों में से है। गोआ उत्सव फरवरी के मध्य मनाया जाने वाला हर्षोल्लास का पर्व है। हफ्ते भर चलने वाला यह पर्व आकर्षक जलूसों, झाँकियों, गिटार की झंकारों और लुभावने नृत्यों से मदमस्त रहता है।
उपवन उत्सव
दिल्ली का उपवन उत्सव बागवानी में रुचि रखने वालों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस बहुआयामी पुष्प प्रदर्शनी में फूलों और पौधों की असंख्य जातियों - प्रजातियों के दर्शन किये जा सकते हैं।
गुलाब उत्सव
चंडीगढ़ के रोज़ गार्डेन में भारत की सबसे बड़ी गुलाब प्रदर्शनी का आयोजन गुलाब उत्सव के नाम से किया जाता है। दो दिन वाले इस आयोजन में गुलब की असंख्य आकर्षक जातियों के साथ-साथ अनेक दुर्लभ प्रजातियों के भी यहाँ दर्शन किए जा सकते हैं।
मार्च माह के पर्व
मार्च महीना होली, शिवरात्रि और गुड फ्राइडे के पर्वो का है। ये सामाजिक तथा धार्मिक पर्व हैं तथा पूरे भारत में धूमधाम से मनाए जाते हैं। साथ ही भारत सरकार की ओर से कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है जो इस माह को पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।
खजुराहो नृत्य महोत्सव (खजुराहो मध्यप्रदेश) चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए खजुराहो के मंदिर अपने उत्कृष्ट पाषाण शिल्प के लिए विश्वविख्यात हैं ।
इसमें से अवशेष २२ मंदिर प्रत्येक वर्ष मार्च के महीने में भारतीय शास्त्रीय नृत्य के सप्ताह भर लम्बे कार्यक्रमों द्वारा सजीव हो उठते हैं। इस समय भारत के अनेक विश्वविख्यात कलाकार यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
शिवरात्रि (सम्पूर्ण भारत) - यह एक धार्मिक पर्व है और सम्पूर्ण भारत में गहरी आस्था के साथ मनाया जाता है। दिन व्रत और पूजा के साथ-साथ मंदिर में दर्शन की विशेष परंपरा है। प्रसिद्ध शिव मंदिरों जैसे काशी विश्वनाथ मंदिर, आंध्र के कलाहासी मंदिर और तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर अपने कार्यक्रमों के लिए प्रसिद्ध हैं।
होली (उत्तर भारत) - मार्च के महीने में होली का पर्व उत्तर भारत में धूम धाम के साथ मनाया जाता है। यह वसंत ऋतु के स्वागत और जन सामान्य के मनोरंजन का पर्व है। लोग एक दूसरे पर रंगीन पानी की बौछार करते हैं और चेहरे पर अबीर गुलाल लगाते हैं। नृत्य और संगीत इस पर्व में जान डाल देते हैं। ब्रज और मथुरा नगरों की होली दर्शनीय होती है। इन नगरों को श्री कृष्ण ने अपने जन्म से कृतार्थ किया था। यहाँ रंग-गुलाल उत्सव पूरे एक सप्ताह तक चलता है जिसमें जलूस, जमघट, गीत, संगीत और उत्साह की पराकाष्ठा देखते ही बनती है।
होली
नंदगाँव और बरसाने की लठ्ठमार होली महिलाओं की लाठियों और कोड़ों के कारण प्रसिद्ध है। आनंदपुर साहब में इस अवसर पर सिख एक विशेष पर्व मनाते हैं जिसे होला मोहल्ला कहते हैं। इस अवसर पर प्राचीन युद्धकला का प्रदर्शन किया जाता है।
होयसला महोत्सव (वेलूर, कर्नाटक) - वेलूर और हेलेविद में होने वाला यह एक शानदार नृत्य महोत्सव है। इस महोत्सव के अवसर पर होयसला के आकर्षक पाषाण मंदिरों की उत्कृष्ट मूर्तिकला भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की पारंपरिक पृष्ठभूमि में परिवर्तित हो जाती है और कार्यक्रमों की शोभा देखते ही बनती है।
एलोरा महोत्सव (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) - ६०० से १००० वीं शताब्दी के मध्य निर्मित बेहतरीन पाषाण कारीगरी वाली ३४ एलोरा गुफाएँ मार्च के महीने में संगीत व नृत्य के शास्त्रीय कार्यक्रमों से गुंजायमान हो उठती हैं इस अवसर पर यहाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ कलाकार अपना प्रदर्शन करते हैं।
गज महोत्सव (जयपुर) -के गज महोत्सव का विशेष आकर्षण हाथियों, घोड़ों और ऊँटों का जलूस होता है। लोकनर्तकों के रंगारंग कार्यक्रम इसमें राग और रंग का सुंदर संयोजन करते हैं। हाथियों की दौड़ व पोलो की प्रतियोगिताएँ इस उत्सव की विशेषताएँ हैं। हाथी और पुरुषों के बीच रस्साकशी का खेल भी कुछ कम मनोरंजक नहीं।
अप्रैल माह के पर्व
गणगौर (राजस्थान)
अप्रैल में मनाया जाने वाला राजस्थान का यह सबसे लोकप्रिय पर्व १८ दिनों तक चलता है। इन दिनों पार्वती के अवतार गौरी की आराधना की जाती है। इसे पूरे राजस्थान की महिलाएँ और लडकियाँ अत्यंत श्रद्धापूर्वक मनाती हैं। गौरी की मूर्तियों को सजाया जाता है और प्रसाद अर्पित किया जाता है। इस अवसर पर विवाह के योग्य युवक - युवतियों के जीवनसाथी का चयन शुभ माना जाता है। पर्व के अंतिम दिन हर नगर में हाथी घोड़े नर्तक और बाजों गाजों से युक्त जलूस निकाले जाते हैं जो बड़े ही सुन्दर प्रतीत होते हैं।
मेवाड़ उत्सव (उदयपुर, राजस्थान)
बसन्त के आगमन की सूचना देने वाला यह पर्व राजस्थानी नृत्य, गीत, भक्ति संगीत, शोभा यात्राओं और आतिशबाजी के सौंदर्य से परिपूर्ण होता है। इसे गणगौर त्योहार के साथ ही उदयपुर के मनोरम वातावरण में मनाया जाता है। गणगौर की मूर्तियाँ हाथ में ले कर झील की ओर प्रस्थान करती रंगबिरंगे परिधान में सजी महिलाओं का सौदर्य देखते ही बनता है। पिछोला झील में नावों के अत्यंत अपूर्व प्रदर्शन से इस समारोह की अंत होता है।
भांगड़ा नृत्यबैसाखी
भारतीय नववर्ष की सुचना देने वाले इस पर्व को लगभग पूरे भारत में मनाया जाता है। लेकिन बैसाखी नाम से पंजाब में मनाए जाने वाले इस त्योहार की बात ही कुछ और है। यह पर्व सिखों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इसी दिन गुरु गोविंद सिंह ने खालसा की स्थापना की थी।
सम्पूर्ण उत्तर भारत में किसान पूजा प्रार्थना तथा हर्षोल्लास के साथ इसे मनाते हैं। एक ओर प्रकृतिक सुषमा से परिपूर्ण खेत और दूसरी उत्सव और भोज के साथ-साथ भांगडा की दमदार ताल का आनंद वातावरण में तैरने लगता है। मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं पुराने वैर माफ कर दिए जाते हैं और हर तरफ हर व्यक्ति खुशी में डूबा दिखाई देता है।
विशू (केरल)
केरल में इस दिन मनाए जाने वाले विशु उत्सव में आतिशबाज़ी नए कपड़ों और 'विशुकनी' की खरीदारी प्रमुख होती है। विशुकनी फूल, फल, अनाज, कपड़ा, सोना और रूपयों से बनी एक सजावट होती है। मलयाली लोगों का विश्वास है कि सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले इसे देखने से साल भर परिवार में संपन्नता बनी रहती है। दिया, नारियल, सिक्के और पीले फूल भी शुभ वस्तुओं में गिने जाते हैं। कुछलोग प्रात:काल ईश्वर के दर्शन करना पसन्द करते हैं और कुछ शीशे में अपना प्रतिबिंब देखना जो आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता है। घर में काम करने वालों और बच्चों को नकद उपहार देने की परंपरा भी इस त्योहार में है।
रंगाली बिहू (असम)
रंगाली बिहू के नाम से आसाम में इसे सजीव नृत्य संगीत और भोज के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। आज के दिन अच्छी फसल और पशुधन की सम्पन्नता के लिए प्रार्थना की जाती है।सामुदायिक उत्सव भोज और नृत्य का आयोजन इस पर्व की विशेषताएं हैं। इस अवसर पर उनका पारंपरिक बिहू नृत्य मन मोह लेता है। ढोल की तेज ताल पर दिल की धड़कनों को बढ़ाने वाले प्रेमगीतों से ओतप्रोत इस मदमस्त नृत्य पर थिरकते युवक युवतियों के झुंड बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
महावीर जयंती
जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर के जन्मदिन के अवसर को जैन संप्रदाय द्वारा पूरे भारत में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। जैन मंदिरों और तीर्थस्थानों में विशेष प्रार्थनाएँ अर्पित की जाती हैं।
रामनवमी
श्री राम का जन्मदिवस पूरे भारत में अत्यंत भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। रामायण का अखण्ड पाठ होता है। व्रत रखे जाते हैं। मन्दिरों में दर्शन किए जाते हैं और मध्याह्ण १२ बजे के बाद भोज का आयोजन होता है। फलाहार किया जाता है तथा गीत संगीत और भजन के कार्यक्रम भी होते हैं।
मई माह के पर्व
(पूरन त्रिचुर, केरल) : मई में केरल के त्रिचुर नगर में पूरन नाम का उत्सव मनाया जाता है। नगर के वणक्कम नाथ मंदिर में पूरन उत्सव की मनोहर छटा देखते ही बनती है। सुसज्जित हाथियों से शोभायमान जलूस अतिसुन्दर प्रतीत होते है। इस उत्सव का अंत रात को रंगबिरंगी आतिशबाजी के साथ होता है।
ग्रीष्म महोत्सव - (सभी प्रमुख पहाड़ी नगरों में)
ग्रीष्म का प्रारंभ सभी प्रमुख पहाड़ी आवतीय स्थानों में चहल पहल बिखेर देता है। होटलों और रिज़ौर्टो की गतिविधियाँ प्रारंभ हो जाती हैं। सजीव सांस्कृतिक कार्यक्रम, पुष्प प्रदर्शनियाँ तथा अन्य कार्यक्रमों से उटी, शिमला, दार्जिलिंग, नैनीताल, मसूरी और माउन्ट आबू जैसे नगर रंगीन हो उठते हैं।
उर्स ( अजमेर, राजस्थान) अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइउद्दीन चिरती की दरगाह पर हर साल उर्स का आयोजन होता है। विश्व के हर कोने से तीर्थयात्री यहाँ संत के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। इस अवसर पर लगने वाले विशाल मेले में धार्मिक वस्तुएँ, किताबें, कढ़े हुए कालीन, चाँदी के आभूषण की बहुतायत रहती है।
अजमेर उर्स
बुद्ध पूर्णिमा (उत्तर भारत) बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध को आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति हुयी थी। इस आत्मज्ञान दिवस को मनाने के लिए सम्पूर्ण उत्तर भारत के लोग बुद्ध पूर्णीमा का पर्व मनाते हैं। बौद्ध मंदिरों में सजावट की जाती है, विशेष प्रार्थनाएँ होती है और घरों में भक्ति और आनंद का वातावरण रहता है।
अन्तर्राष्ट्रीय पुष्प उत्सव (गंगटोक, सिक्किम)
सिक्किम का यह आकर्षक पुष्प उत्सव हर वर्ष मार्च से मई तक मनाया जाता हैं। इस समय इस पर्वत प्रदेश की सुषमा पूरे यौवन पर होती है और प्रकृति का सौन्दर्य देखते ही बनता है। आर्किड की ६०० से अधिक प्रजातियाँ, वृक्षों की २४० प्रजातियाँ करीब इतनी ही फर्न की प्रजातियाँ, १५० किस्म के ग्लैडयोलाय, ४६ किस्मों के रोडोडैन्ड्रन और मंगोलिया की किस्में यहाँ अपने पूरे सौन्दर्य पर होती हैं। इसके अतिरिक्त गुलाब एल्पाइन नागफनी बेलों जंगली फूलों गमले वाले फूलों और अनेक प्रकार के फूलों को इस समय यहाँ देखा जा सकता है, खरीदा जा सकता है और उनके विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
भोजन उत्सव, याक की सवारी और साहसिक नौका अभियान इस उत्सव के अन्य रोचक कार्यक्रम हैं जो विश्व भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
जून माह के पर्व
हेमिस महोत्सव (लद्दाख)
जून माह में लद्दाख के सबसे बड़े बौद्धविहार हेमिस का परिसर हेमिस महोत्सव से रंगीन हो उठता है। इस अवसर पर वे गुरू पद्मसम्भव का जन्मदिन मनाते हैं। लम्बे सींगों के साथ मुखौटों से सुशोभित नर्तक विशेष प्रकार की ढोल के साथ नृत्य करते हैं तो यह समा देखते ही बनता है।
इस अवसर पर हस्तकला की कृतियों से भरा हुआ मेला दर्शकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता है।
ग्रीष्म महोत्सव (माउंट आबू, राजस्थान)
हर साल जून के महीने में राजस्थान के माउंट आबू शहर की पन्ने सी हरी पहाड़ियों, नीलम सी नीली झीलों नयनाभिराम वादियों और मनोरम जलवायु में ग्रीष्म महोत्सव मनाया जाता है।
तीन दिनों के इस उत्सव में शास्त्रीय संगीत लोक नृत्य दर्शकों के लिए भारत के सांस्कृतिक और लोक जीवन की एक खिड़की खोल देते हैं। कार्यक्रम का आरंभ लोक गीतों से होता है और गैर, घूमर और ढाप एक के बाद एक आपका दिल जीत लेते हैं।
खेल कार्यक्रम जैसे नक्की झील में नौका दौड़ तथा संगीत कार्यक्रम जैसे शाम ए ग़जल का लोगों को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। कार्यक्रम ज़बरदस्त समापन होता है बेहतरीन आतिशबाज़ी से जो सभी पर्यटकों का मन मोह लेता है।
गंगा दशहरा (गंगा के तटों पर)
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। संपूर्ण उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार एवं भारत के अन्य क्षेत्रों में इस दिन विशेष आयेजन किये जाते हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार, वाराणसी, इलाहाबाद, चित्रकूट एवं गंगा के किनारे बडी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं। गंगा के किनारे विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, संध्या काल मे तो इसकी शोभा अवर्णनीय सुंदर बन जाती है, गंगा के किनारे को दीपो से, फूलों से, रंगोली एवं अन्य प्रकार से सजाया जाता हैं। श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं।
सिंधु दर्शन महोत्सव
सिंधु दर्शन महोत्सव तथा यात्रा को लेह-लद्दाख क्षेत्र में हर वर्ष सिंधु नदी के उद्गम स्थल सिंधु घाट में जून के अंतिम सप्ताह में आयोजित किया जाता है। वर्ष 1996 में आरम्भ की गई इस यात्रा में देश के कोने कोने से आए हुए पर्यटक भाग लेते हैं। वैदिक संस्कृति का प्रतीक मानी जाने वाली सिंधु नदी के पावन जल को नमन, सांस्कृतिक संध्या तथा झूलेलाल का पूजन इस महोत्सव के प्रमुख आकर्षण होते हैं।
जुलाई माह के पर्व
रथयात्रा (पुरी, उड़ीसा)
जुलाई के महीने में उड़ीसा के पुरी नामक नगर में जगन्नाथ जी के प्रसिद्ध मंदिर में नयनाभिराम रथ-उत्सव मनाया जाता है। जगत के स्वामी जगन्नाथ जी, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की मूर्तियाँ तीन अलग-अलग रथों में सजा कर नगर में जलूस निकाला जाता है।प्रमुख रथ १४ मीटर ऊँचा, १० वर्गफुट की चौड़ा है तथा १६ पहियों पर चलता है। हजारों भक्त इनको खींच कर १.५ किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर पहुँचाते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय आम उत्सव (नयी दिल्ली) -
दिल्ली में जुलाई के महीने में आम उत्सव का आयोजन किया जाता है। 1987 से प्रारंभ यह उत्सव दो दिन तक चलता है। इसमें आम की असंख्य किस्मों को प्रदर्शित किया जाता है।  मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है।
चंपाकुलम नौका दौड़
जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के प्रथम सप्ताह में केरल की चंपाकुलम झील में इस नौका दौड़ का आयोजन किया जाता है। यह प्रतियोगिता राज्य में मौसम की सबसे पहली नौका दौड़ है। मलयालम महीने मिधुनम के मूलम दिवस पर आयोजित इस प्रतियोगिता को केरल की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित सर्प नाव दौड़ के रूप में माना जाता है। मल्लाहों का गीत वंछिपट्टू और रोमांचक चुंदनवैलम रेस इस आयोजन के प्रमुख आकर्षणों में से हैं।
  अगस्त माह के पर्व
स्वतंत्रता दिवस ( सम्पूर्ण भारत)
भारत के स्वतंन्त्रता के दिवस की याद में स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया जाता हैं। १५ अगस्त को भारत की राजधानी दिल्ली में झंडा आरोहण और सांस्कृतिक कार्यक्रम मुख्य आकर्षण होते हैं। सबसे प्रमुख कार्यक्रम होता हैं लाल किले से प्रधानमंत्री का भाषण। प्रदेशों की राजधानियों और प्रशासकीय तंत्रों में भी विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
रक्षाबंधन (उत्तर भारत)
इस पर्व पर बहन अपने घनिष्ट प्रेम के प्रतीक रेशमी धागे 'राखी' को भाई की कलाई पर बाँधती हैं और बदले में भाई उसे उपहार देता है। यह त्योहार भाई बहन के बीच परस्पर सहयोग और रक्षा की भावना को सुदृढ़ करता है।
नागपंचमी (पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत)
यह पर्व पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में मनाया जाता हैं। साँपों की पूजा और उनके प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करना इस पर्व का प्रमुख उद्देश्य है।
जन्माष्टमी (सम्पूर्ण भारत में)
श्री कृष्ण का जन्मदिन सम्पूर्ण भारत में बड़े उत्सव के साथ मनाया जाता है। मथुरा और वृन्दावन में जहाँ श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया, जन्माष्टमी बड़ी धूम देखने योग्य होती है। उनके जीवन की घटनाओं को झाँकियों में प्रदर्शित किया जाता है और कृष्णलीला नाटक के रूप में भी खेली जाती है। महाराष्ट्र में ऊँचाई पर दही की हाँडी को लटका दिया जाता है और नवयुवकों की टोलियाँ पिरामिड बना कर उसको तोड़ने की कोशिश करते हैं।
तीज - (राजस्थान और चंडीगढ़)
वर्षा ऋतु के स्वागत में राजस्थान और पंजाब में तीज नाम का झूला उत्सव मनाया जाता है। पेड़ों पर झूले डाल दिए जाते हैं और उन्हें फूलों से सजाया जाता है महिलाएँ वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित होकर झूला झूलती हैं और सावन के गीत गाती है।
ओणम (केरल)
प्राचीन राजा महाबली के सम्मान में यह पर्व मनाया जाता है जो केरल का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। साथ ही साथ नयी फसल का उत्साह भी लोगों में होता हैं। दस दिन के इस रंगारंग त्योहार में बैलों को सजाया जाता है, फूलों की रंगोली बनाई जाती है। घरों में रंग रोगन होता है, नए कपड़े पहने जाते हैं, खाना पीना होता है और महाबली के सम्पन्न राज्य की प्रशंसा में गीत गाए जाते हैं। इस पर्व का प्रमुख आकर्षण सर्पनौकाओं की दौड़ प्रतियोगिता है जो चम्पाकुलम, अरणमुला और कोट्टयम के समुद्री पानी में होती हैं।
नेहरू ट्राफी नौका दौड़ (केरल)
केरल का अलापुजा नगर अपनी वार्षिक नौकादौड़ के लिए प्रसिद्ध हैं। यह दौड़ अगस्त माह के दूसरे शनिवार को होती है। इस लंबी दौड़ में आकर्षण सर्प नौकाए भाग लेती हैं जिन्हें सौ से भी अधिक लोग एक साथ खेते हैं। विजेता को विजय चि) प्रदान किया जाता हैं। इस दौड़ का आनंद लेने लोग विश्व के हर कोने से यहाँ आते हैं। सितंबर माह के पर्व
फुलाइच (हिमांचल प्रदेश)
बारिश का मौसम जाते ही उत्तर भारत की पहाड़ियों में शरद ऋतु की हल्की सर्दी का आगमन होने लगता है। हिमांचल प्रदेश के किन्नौर नगर में इस समय "फुलाइच" नाम से फूलों का उत्सव मनाया जाता है जो इस प्रदेश की प्रकृति और परंपरा के सौन्दर्य का सजीव दृश्य प्रस्तुत करता है। ग्राम्यजन तलहटियों में फूलों की तलाश करते घूमते हैं और उन्हें प्रमुख चौराहे पर इकठ्ठा कर देते हैं। इन्हें स्थानीय देवता को अर्पित किया जाता है।
इसके बाद शुरू होता है मौज मस्ती का दौर - नाच-गाना और दावत। छम्ब के पास छत्रारि गाँव में शक्ति देवी के मंदिर के पास मेले में तथा अन्य स्थानों पर मुखौटे नृत्य का आयोजन होता है। इसी समय कांगड़ा घाटी में सैर नामक उत्सव मनाया जाता है। इसमें छोटी छोटी दूकानों और लोकगीतों के साथ ही शिमला के पास अर्की और मशोबरा में भैसों की लड़ाई का आयोजन किया जाता है। कांगड़ा में नूरपुर के पास पुराने किले की दर्शनीय दीवार के नीचे नगीनी मेले द्वारा गर्मी के मौसम को भाव भीनी विदाई दे दी जाती है।
गणेश चतुर्थी (महाराष्ट्र, तामिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक)
अच्छे काम की शुरुआत और यशप्राप्ति के लिए इस दिन को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन पानी में किया जाता है। मुम्बई में समुद्र के किनारे विसर्जन के दिन का दृष्य देखनेलायक होता है।
महाराष्ट्र में यह त्योहार सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक और फिल्मों का आयोजन किया जाता है।
तार्णेतर मेला
सितम्बर माह में गुजरात के पास सौराष्ट्र में तार्णेतर नामक स्थान पर एक अत्यंत सजीव और मनोरंजक मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला त्रिनेत्रेश्वर मन्दिर द्वारा मनाए जाने वाले अर्जुन और द्रौपदी के विवाह उत्सव का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। कोली, भारवाड़ और राबड़ी जैसे आदिवासी लोगों में शादी के लिए उत्सुक लोगों के लिए यह शादी बाज़ार है। परंपरागत परिधान और गहने पहन कर किए जाने वाले लोकनृत्य इस मेले का मुख्य आकर्षण होते हैं। यहाँ हाथ से बनी, कशीदाकारी और आइने से सजी हुयी छतरियाँ खरीदारी का विशेष आकर्षण हैं जिन्हें एक बार देखने के बाद भुलाया नहीं जा सकता।
अक्तूबर माह के पर्व
दशहरा (सम्पूर्ण भारत)
सारे भारत में रावण पर राम की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला यह पर्व आतंक पर न्याय की विजय का प्रतीक है। दशहरे की संध्या से पहले नौ दिनों तक, जिसे नवरात्रि कहते हैं, रामलीला का आयोजन किया जाता है। दसवे दिन रावण के साथ उसके भाई मेघनाथ और बेटे कुंभकर्ण की वृहदाकार प्रतिमाएँ जलाई जाती हैं। मेला लगता है मिठाइयाँ खायी जाती हैं और शोभा यात्राएँ निकली जाती हैं। 
सम्पूर्ण भारत में प्रचलित इस पर्व को मनाए जाने की अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग प्रथाएँ हैं। पश्चिम बंगाल में दशहरे को दुर्गा पूजा के नाम से मनाते हैं। दुर्गा देवी की पूजा के मंडप बड़ी खूबसूरती से सजाए जाते हैं। लोग इकठ्ठे हो कर इस त्योहार का मज़ा उठाते हैं। रात में पूजा और प्रसाद के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और देर रात तक यह कार्यक्रम चार दिनों तक चलते रहते है। दक्षिण भारत में घरों को मिट्टीके खिलौने और भगवान की प्रतिमाओं से सजाया जाता है। मित्र और संबंधी एक दूसरे के घर जाते और शुभकामनाओं का आदान प्रदान होता है।
गुजरात में नवरात्रि के अवसर पर डांडिया रास और गरबा नृत्य की धूम होती है। हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में दशहरे का अलग रंग देखने को मिलता है। एक सप्ताह तक कुल्लू के पहाड़ी नगर में मेले का आयोजन होता है। अधिशासी देवता रघुनाथ जी के सम्मान में गाँव के सारे छोटे मंदिरों से देवताओं को धूमधाम से जलूस निकाल कर 'मैदान' लाया जाता है। महलों के नगर मैसूर में दस दिन तक दशहरा अत्यंत राजसी ढंग से मनाया जाता है। मैसूर पैलेस पर जगमगाते हुए असंख्य दीपों का सौंदर्य देखते ही बनता है। मशाल जलूस और संगीत के सांस्कृतिक कार्यक्रम इस उत्साह के वातावरण में चार चाँद लगा देते हैं।
मारवाड़ उत्सव (मारवाड़ राजस्थान)
राजस्थान के मारवाड़ प्रदेश में मांड लोकगीतों को गाए जाने की परंपरा है। ये लोक गीतों का एक परिष्कृत शास्त्रीय अंग है जिसमें राजस्थानी शासकों की प्रेम कथाओं का वर्णन मिलता हैं।शरद पूर्णिमा की रात्रि में इन गीतों के साथ नृत्य करते हुए लोकनर्तक प्राचीन कथाओं को अपनी कला से जीवंत कर देते हैं।
गांधी जयंती (सम्पूर्ण भारत)
२अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मनाया जाता है। एक महीने पहले से भारत भर में फैले गांधी ग्रामोद्योग के प्रतिष्ठानों में, हाथ के बने सूती रेशमी व ऊनी वस्त्रों तथा हस्त निर्मित वस्तुओं के मूल्यों में भारी छूट दी जाती है जिसका लोग साल भर इंतज़ार करते हैं।
भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति अपने बाकी राजनैतिक सदस्यों के साथ राजघाट जाकर गांधीजी को श्रंद्धांजली अर्पित करते हैं। इस दिन सारे देश में कार्यालय और स्कूल बंद होते हैं।
राजगीर महोत्सव (राजगीर बिहार)
संगीत के रंगारंग आयोजन वाला यह पर्व मगध राजाओं की प्राचीन राजधानी राजगीर में मनाया जाता है। यह नगर गौतम बुद्ध की की साधना और प्रचार के लिए भी प्रसिद्ध है।
  ड़ा दिन (सम्पूर्ण भारत)
क्र्रिसमस का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है। मुख्य नगरों में सजावट देखते ही बनती है। बाज़ार रंगबिरंगी सजावटी वस्तुओं से भरे रहते हैं। कैरोल की मधुर ध्वनि और अभ्यास से वातावरण संगीतमय हो उठता है। मिलना जुलन और उपहारों आदान प्रदान इस पर्व के प्रमुख अंग हैं। पचीस दिसम्बर को मनाए जाने वाले इस उत्सव की चहल पहल एक हफ्ते पहले से शुरू हो कर साल के अंतिम दिन और नए साल के आगमन तक चलती है।
कुरूक्षेत्र महोत्सव (कुरूक्षेत्र, हरियाना)
भगवद् गीता के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में गीता जयंती के रूप में यह महोत्सव मनाया जाता है। भक्तजन ब्रह्मा सरोवर या सन्नेहित सरोवर में श्रद्धा के साथ स्नान करते हैं। एक हफ्ते तक चलनेवाले इस महोत्सव में उसी से भगवद कथा, नृत्य, नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। शाम के समय सरोवर में दीपदान की परंपरा है।
विष्णुपुर महोत्सव (विष्णुपुर, पश्चिम बंगाल)
बाँकुरा ज़िले के विष्णुपुर नामक गाँव में २७ से ३१ दिसंबर तक यह उत्सव मनाया जाता है। यह लघुनगर सिल्क की साड़ियों और टेराकाटा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। स्थानीय हस्तकलाओं की बिक्री और शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम इस महोत्सव के प्रमुख आकर्षण हैं।
कोनार्क नृत्य महोत्सव (कोनार्क, उड़ीसा)
सूर्य मन्दिर - सूर्य भगवान के रथ की भव्य प्रतिमा और उसे खींचनेवाले सात घोड़े, यह एकमेव और सुंदरता का भव्य प्रतीक कोनार्क के समुद्र किनारे स्थित है। यह ऐसी जगह है जहाँ हर साल शास्त्रीय संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है। भारत के प्रसिद्ध कलाकार यहाँ खुले आसमान के नीचे अपनी कला को प्रस्तुत करते हैं। घुंघरू, बाँसुरी, पाखावज आदि की गूँज वातावरण में मधुरता घोल देती है, साथ साथ हस्तकला का प्रदर्शन इस माहौल में चारचाँद लगा देता है।
ईद-उल-फितर (सम्पूर्ण भारत)
रमज़ान महीने का अन्त ईद से होता है। रमज़ान महीने में इस्लाम के अनुयायी दिनभर उपवास रखते हुए धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करते हैं और रात में ही खाना खाते हैं। यह समय इफ्तारी का होता है जिसे मिलकर उत्सव की तरह खाने पीने के साथ मनाया जाता है। ईद का दिन नये कपड़े, गहने, जूते और खुशी मनाने का होता है। मिठाइयाँ, मिलना जुलना, घर की सजावट और तोहफों का लेन देन इस पर्व के प्रमुख अंग हैं।
शिल्पग्राम हस्तकला मेला (उदयपुर, राजस्थान)
उदयपुर जैसी शाही नगरी में भारत के कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित आकर्षक हस्तकलाओं का यह मेला, हस्तकला-प्रेमियों का तीर्थ है। राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात की हस्तकलाओं, कारीगरों, नृत्य संगीत और लोक जीवन की झाँकी प्रस्तुत करने वाला यह छोटा-सा स्थल उदय पुर से तीन किलोमीटर दूर शिल्पग्राम नामक स्थान पर है। दिसंबर के महीने में सम्पूर्ण भारत के हस्तशिल्पी यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
 

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