क्रिसमस एक ऐसा त्यौहार है, जो सारी दुनिया में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसकी शुरुआत दो हज़ार साल पूर्व ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में हुई थी और केवल ईसाई धर्म से जुड़े लोग ही इसे मनाते थे, लेकिन कालांतर में सभी धर्म के लोग इस त्यौहार को मौज-मस्ती के त्यौहार के रूप में मनाने लगे। इस त्यौहार के सर्वव्यापी बनने का सबसे बड़ा कारण शायद सांता क्लाज़ रहा है, जिसने दुनियाभर के बच्चों का मन मोह लिया। बचपन में हमने अपने माता-पिता को, जो अपने घोर गांधीवादी तथा प्रगतिशील विचारों के लिए प्रसिद्ध थे, हर साल इस त्यौहार पर सभी भाई-बहनों के लिए क्रिसमस ट्री के नीचे तोहफ़े रखकर हमें आश्चर्यचकित करते देखा था।
तब हमारा बालसुलभ मन कंधे पर उपहारों का बड़ा-सा बोरा लादे इस महान संत के विषय में तरह-तरह की कल्पनाएँ करता रहता था और २५ दिसंबर की रात को हम इस विश्वास के साथ गहरी नींद में खो जाते थे कि रात को चुपके से वह हमारे घर आकर हमारा मनपसंद उपहार पेड़ के नीचे रख जाएगा। जिस प्रकार हमारे माता-पिता हमारे बाल मन को भरमाते थे, उसी तरह हम भी बाद में अपने बच्चों के लिए क्रिसमस के उपहार रखने लगे। हमारे दोनों बच्चे हर साल बड़ी तन्मयता से सांता क्लाज के नाम अपनी चिठ्ठी लिखने के बाद उसे एक मोजे में रखकर खिड़की में टाँग देते थे और अगले दिन जब वे सोकर उठते थे तो उन्हें अपने उपहार जगमगाते क्रिसमस पेड़ के नीचे रखे मिलते थे। सच्चाई बताकर उनका विश्वास तोड़ने की हमारी कभी हिम्मत नहीं हुई। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही इस परंपरा की मज़ेदार बात यह है कि जब हमारे बच्चे बड़े हुए, तब सच्चाई जान लेने के बावजूद वे भी सांता क्लाज के उपहारों से अपने बच्चों का मन लुभाने लगे।
इस त्यौहार के सर्वव्यापी होने का सबसे बड़ा सबूत हमें अपनी हाल ही की चीन यात्रा के दौरान मिला। हमने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि इस कम्यूनिस्ट देश में, जिसके शासक धर्म को जनता को गुमराह करनेवाली अफीम की संज्ञा देते रहे हैं, हमें क्रिसमस का हंगामा देखने को मिलेगा। गुआंगचाऊ के एक पाँच सितारा होटल में प्रवेश करते ही जीज़स की जन्म की झाँकियाँ तथा बिजली की रोशनी में जगमगाता क्रिसमस पेड़ देखकर हम आश्चर्यचकित रह गए।
त्यौहार धन कमाने का साधन
बाद में हमें पता चला कि चीन में क्रिसमस से जुड़ी चीज़ों का उत्पादन बहुत बड़े पैमाने पर होता है और ईसाई धर्म से जुड़ा यह त्यौहार उसके लिए धन कमाने का बहुत बड़ा साधन बन गया है। पहले ताइवान, फिलिप्पीन तथा थाईलैंड जैसे देश इस व्यापार में अग्रणी थे, लेकिन अब चीन ने उन सभी को बहुत पीछे छोड़ दिया है। चीनी लोग हर साल इनमें परिवर्तन करते रहते हैं और इन्हें अन्य देशों से अधिक आकर्षक बनाने की होड़ में लगे रहते हैं।
जापान तो मूल रूप से एक बौद्ध देश है, लेकिन चीन की ही तरह १९ वीं शताब्दी में वहाँ भी इस त्यौहार से संबंधित चीज़ों का निर्माण शुरू हो गया था। तभी से जापानी लोग क्रिसमस के नाम से परिचित होने लगे। हालाँकि जापान में केवल एक प्रतिशत लोग ही ईसाई धर्म के अनुयायी हैं, लेकिन यह त्यौहार बच्चों से जुड़ा होने के कारण लगभग हरेक जापानी घर में आपको सजा हुआ क्रिसमस पेड़ देखने को मिल जाएगा। जापानवासियों के लिए यह एक छुट्टी का दिन होता है, जिसे वे बच्चों के प्रति अपने प्यार को समर्पित करते हैं। २४ दिसंबर को सांता क्लाज बच्चों के लिए अनेक उपहार लेकर आता है। इस अवसर पर हर शहर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और जगह-जगह आपको खिलौनों, गुड़ियों, रंग-बिरंगे कंदीलों और अन्य चीज़ों से सजे बड़े-बड़े क्रिसमस के पेड़ देखने को मिल जाएँगे। जापान की सबसे ख़ास चीज़ है ऑरिगैमी से बना (काग़ज़ मोड़ कर तथा काट कर बनाया गया) पक्षी, जिसे ये लोग शांति का दूत कहते हैं। इसे जापानी बच्चे एक-दूसरे को उपहार में देते हैं।
जापानियों के लिए क्रिसमस रोमांस अर्थात प्रेम का पर्यायवाची भी बन गया है। इस दिन जापानी लोग इंटरनेट पर अपने साथी की तलाश करते हैं और मज़े की बात यह है कि उन्हें कोई न कोई साथी मिल भी जाता है। ज़्यादातर लोगों के लिए यह दोस्ती केवल इस त्यौहार के दिन तक ही सीमित रहती है, लेकिन कभी-कभी वह ज़िंदगी भर के साथ में भी परिणित हो जाती है। ऑस्ट्रेलिया के क्रिसमस का ज़ायका हमें ब्रिस्बेन हवाई अडडे पर उतरते मिल गया था। हवाई अडडे पर स्थित दूकानें तथा क्रिसमस ट्री तो सुंदर ढंग से सजायी गई थीं, साथ ही सांता क्लाज़ की वेशभूषा धारण किया एक व्यक्ति घूम-घूमकर बच्चों को चाकलेट भी बाँट रहा था। बाद में हमने गौ़र किया वहाँ इस त्यौहार को मनाने का अपना अलग ही अंदाज़ है। दिसंबर में जब अन्य देश ठंड से सिकुड़ रहे होते हैं और कहीं-कहीं बऱ्फ भी पड़ रही होती हैं, वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में यह गर्मियों का मौसम होता है। वहां के लोग इस त्यौहार को समुद्र के किनारे मनाते हैं और इस अवसर पर अपने मित्रों तथा स्वजनों के लिए एक विशेष रात्रि-भोज का आयोजन करते हैं, जिसमें 'बार्बेक्यू पिट' में भुना अलग-अलग किस्म का मांस शामिल होता है। इसके अलावा आलूबुखारे की खीर विशेषरूप से बनाई जाती है। ऑस्ट्रेलियायी लोग अपने सगे-संबंधियों के साथ ही क्रिसमस मनाते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें हज़ारों मील लंबी यात्रा ही क्यों न करनी पड़े। पड़ोसी देश न्यूज़ीलैंड में भी यह त्यौहार ऑस्ट्रेलिया की ही तरह बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
तब हमारा बालसुलभ मन कंधे पर उपहारों का बड़ा-सा बोरा लादे इस महान संत के विषय में तरह-तरह की कल्पनाएँ करता रहता था और २५ दिसंबर की रात को हम इस विश्वास के साथ गहरी नींद में खो जाते थे कि रात को चुपके से वह हमारे घर आकर हमारा मनपसंद उपहार पेड़ के नीचे रख जाएगा। जिस प्रकार हमारे माता-पिता हमारे बाल मन को भरमाते थे, उसी तरह हम भी बाद में अपने बच्चों के लिए क्रिसमस के उपहार रखने लगे। हमारे दोनों बच्चे हर साल बड़ी तन्मयता से सांता क्लाज के नाम अपनी चिठ्ठी लिखने के बाद उसे एक मोजे में रखकर खिड़की में टाँग देते थे और अगले दिन जब वे सोकर उठते थे तो उन्हें अपने उपहार जगमगाते क्रिसमस पेड़ के नीचे रखे मिलते थे। सच्चाई बताकर उनका विश्वास तोड़ने की हमारी कभी हिम्मत नहीं हुई। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही इस परंपरा की मज़ेदार बात यह है कि जब हमारे बच्चे बड़े हुए, तब सच्चाई जान लेने के बावजूद वे भी सांता क्लाज के उपहारों से अपने बच्चों का मन लुभाने लगे।
इस त्यौहार के सर्वव्यापी होने का सबसे बड़ा सबूत हमें अपनी हाल ही की चीन यात्रा के दौरान मिला। हमने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि इस कम्यूनिस्ट देश में, जिसके शासक धर्म को जनता को गुमराह करनेवाली अफीम की संज्ञा देते रहे हैं, हमें क्रिसमस का हंगामा देखने को मिलेगा। गुआंगचाऊ के एक पाँच सितारा होटल में प्रवेश करते ही जीज़स की जन्म की झाँकियाँ तथा बिजली की रोशनी में जगमगाता क्रिसमस पेड़ देखकर हम आश्चर्यचकित रह गए।
त्यौहार धन कमाने का साधन
बाद में हमें पता चला कि चीन में क्रिसमस से जुड़ी चीज़ों का उत्पादन बहुत बड़े पैमाने पर होता है और ईसाई धर्म से जुड़ा यह त्यौहार उसके लिए धन कमाने का बहुत बड़ा साधन बन गया है। पहले ताइवान, फिलिप्पीन तथा थाईलैंड जैसे देश इस व्यापार में अग्रणी थे, लेकिन अब चीन ने उन सभी को बहुत पीछे छोड़ दिया है। चीनी लोग हर साल इनमें परिवर्तन करते रहते हैं और इन्हें अन्य देशों से अधिक आकर्षक बनाने की होड़ में लगे रहते हैं।
जापान तो मूल रूप से एक बौद्ध देश है, लेकिन चीन की ही तरह १९ वीं शताब्दी में वहाँ भी इस त्यौहार से संबंधित चीज़ों का निर्माण शुरू हो गया था। तभी से जापानी लोग क्रिसमस के नाम से परिचित होने लगे। हालाँकि जापान में केवल एक प्रतिशत लोग ही ईसाई धर्म के अनुयायी हैं, लेकिन यह त्यौहार बच्चों से जुड़ा होने के कारण लगभग हरेक जापानी घर में आपको सजा हुआ क्रिसमस पेड़ देखने को मिल जाएगा। जापानवासियों के लिए यह एक छुट्टी का दिन होता है, जिसे वे बच्चों के प्रति अपने प्यार को समर्पित करते हैं। २४ दिसंबर को सांता क्लाज बच्चों के लिए अनेक उपहार लेकर आता है। इस अवसर पर हर शहर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और जगह-जगह आपको खिलौनों, गुड़ियों, रंग-बिरंगे कंदीलों और अन्य चीज़ों से सजे बड़े-बड़े क्रिसमस के पेड़ देखने को मिल जाएँगे। जापान की सबसे ख़ास चीज़ है ऑरिगैमी से बना (काग़ज़ मोड़ कर तथा काट कर बनाया गया) पक्षी, जिसे ये लोग शांति का दूत कहते हैं। इसे जापानी बच्चे एक-दूसरे को उपहार में देते हैं।
जापानियों के लिए क्रिसमस रोमांस अर्थात प्रेम का पर्यायवाची भी बन गया है। इस दिन जापानी लोग इंटरनेट पर अपने साथी की तलाश करते हैं और मज़े की बात यह है कि उन्हें कोई न कोई साथी मिल भी जाता है। ज़्यादातर लोगों के लिए यह दोस्ती केवल इस त्यौहार के दिन तक ही सीमित रहती है, लेकिन कभी-कभी वह ज़िंदगी भर के साथ में भी परिणित हो जाती है। ऑस्ट्रेलिया के क्रिसमस का ज़ायका हमें ब्रिस्बेन हवाई अडडे पर उतरते मिल गया था। हवाई अडडे पर स्थित दूकानें तथा क्रिसमस ट्री तो सुंदर ढंग से सजायी गई थीं, साथ ही सांता क्लाज़ की वेशभूषा धारण किया एक व्यक्ति घूम-घूमकर बच्चों को चाकलेट भी बाँट रहा था। बाद में हमने गौ़र किया वहाँ इस त्यौहार को मनाने का अपना अलग ही अंदाज़ है। दिसंबर में जब अन्य देश ठंड से सिकुड़ रहे होते हैं और कहीं-कहीं बऱ्फ भी पड़ रही होती हैं, वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में यह गर्मियों का मौसम होता है। वहां के लोग इस त्यौहार को समुद्र के किनारे मनाते हैं और इस अवसर पर अपने मित्रों तथा स्वजनों के लिए एक विशेष रात्रि-भोज का आयोजन करते हैं, जिसमें 'बार्बेक्यू पिट' में भुना अलग-अलग किस्म का मांस शामिल होता है। इसके अलावा आलूबुखारे की खीर विशेषरूप से बनाई जाती है। ऑस्ट्रेलियायी लोग अपने सगे-संबंधियों के साथ ही क्रिसमस मनाते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें हज़ारों मील लंबी यात्रा ही क्यों न करनी पड़े। पड़ोसी देश न्यूज़ीलैंड में भी यह त्यौहार ऑस्ट्रेलिया की ही तरह बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
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