पड़ाव आये कई एक घर नहीं आया
कि रास अब के भी हमको सफ़र नहीं आया
किया था ख़ल्क अजब आसमान आँखों ने
कहाँ का चाँद, सितारा नज़र नहीं आया
जो एक बार गया सब्ज पानियों की तरफ़
सुना गया है कभी लौट कर नहीं आया
चिराग़ जलते हवाओं की सरपरस्ती१ में
हमारे लोगों ! तुम्हें ये हुनर नहीं आया
भुलाके तुझको ख़जिल२ होते और क्या होता
भला हुआ कि दुआ में असर नहीं आया
––––––––––––––––––––––––––––––
१.देख-रेख २. लज्जित
कि रास अब के भी हमको सफ़र नहीं आया
किया था ख़ल्क अजब आसमान आँखों ने
कहाँ का चाँद, सितारा नज़र नहीं आया
जो एक बार गया सब्ज पानियों की तरफ़
सुना गया है कभी लौट कर नहीं आया
चिराग़ जलते हवाओं की सरपरस्ती१ में
हमारे लोगों ! तुम्हें ये हुनर नहीं आया
भुलाके तुझको ख़जिल२ होते और क्या होता
भला हुआ कि दुआ में असर नहीं आया
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१.देख-रेख २. लज्जित
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